
Atemberaubend!
Ein Gutenachtgruß für mein #googleverse 🌄
Teilen mit:
- Klick, um über Twitter zu teilen (Wird in neuem Fenster geöffnet)
- Klick, um auf Facebook zu teilen (Wird in neuem Fenster geöffnet)
- Klick, um auf LinkedIn zu teilen (Wird in neuem Fenster geöffnet)
- Klick, um auf Reddit zu teilen (Wird in neuem Fenster geöffnet)
- Klick, um auf Tumblr zu teilen (Wird in neuem Fenster geöffnet)
- Klick, um auf Pinterest zu teilen (Wird in neuem Fenster geöffnet)
- Klick, um auf Pocket zu teilen (Wird in neuem Fenster geöffnet)
- Klicken, um auf Telegram zu teilen (Wird in neuem Fenster geöffnet)
- Klicken, um auf WhatsApp zu teilen (Wird in neuem Fenster geöffnet)
- Klicken, um in Skype zu teilen (Wird in neuem Fenster geöffnet)
✍एक सोच ……
बुझ गये सांझे चूल्हे
————————
कहाँ खो गया वो मिटटी का घर,
गोबर से लीपा हुआ अंगना / दलान और दुआर ओसार,
रातों में गमकती महुआ की मादक सुगंध,
नीम की ठंडी छाँव निम्बौली की महक,
आम और जामुन के पेड़ —
चूल्हे में सेंकी रोटी बटुली की खटाई वाली दाल
आंचल से मुंह ढंके गाँव की नई नवेली भौजाइंया
तर्जनी और मध्यमा ऊँगली से पल्ला थाम,
आँखों से इशारे करती अपने उन को –
और झुक जाती शर्म से पलकें देवरों से नजर मिलते ही
ननद भाभी की चुहलबाजी देवरों की ठिठोली से गूंजता आंगन,
बीच बीच में अम्मा बाबू की मीठी झिडकी से
कुछ पल को ठहर जाता सन्नाटा –
कहाँ गया यह सब ?
शायद ईंट के मकान निगल गये,
मिटटी का सोंधापन
गोबर मिटटी से लीपा आंगन कही खो गया
ढह गया दालान,
फिनायल और फ्लोर क्लीनर से पोछा लगी लाबी में बदल गया ओसारा,
भाँय भाँय करने लगा अब बड़ा आंगन
अब तो पिछवारे वाली
गाय भैंस की सार भी ढह गई अब कोई नहीं यहाँ –
भाइयों के चूल्हे बंट गए और देवर भाभी के रिश्ते की सहज मिठास में
गुड़ चीनी की जगह ले ली शुगर फ्री ने,
ननद का मायका औपचारिक हुआ,
चुहलबाजी और अधिकार नहीं
एक मुस्कान भर बची रहे यही काफी है
अम्मा बाबू जी अब नहीं डांटते
कमाता बेटा है बहू मालकिन,
अब पद परिवर्तन जो हो गया वो
बस पीछे वाले कमरे तक सिमट कर रह गए,
उनका भी बंटवारा साल में महीनो के हिसाब से हो गया,
छह बच्चों को आंचल में समेटने वाली माँ भार हो गई,
जिंदगी भर झट से हर मांग पूरी करने वाले बाबू जी, आउटडेटेड,
अम्मा का कड़क कंठ अब मिमियाने लगा और बाबू जी का दहाड़ता स्वर मौन –
आखिर
बुढापा अब इनके भरोसे है, अशक्त शरीर कब तक खुद से ढो पायेंगे,
दोनों में से एक तो कभी पहले जाएगा,
अम्मा देर तक हाथ थामे रहती है बाबू का –
और भारी मन से कहती है तुम्ही चले जाओ पहले,
नहीं तो तुम्हे कौन देखेगा,
हम तो चार बोल सुन लेंगे फिर भी तुम्हारे बिना कहाँ जी पायेंगे –
आ ही जायेंगे जल्दी ही तुम्हारे पीछे पीछे -भर्रा गया, गला भीग गई आँखें,
फिर मुंह घुमा कर आंचल से पोंछ लिया
हर बरगदाही अमावस पूजते समय,
भर मांग सिंदूर और ऐड़ी भर महावर चाव से लगाती ,
चूड़ियों को सहेज कर पहनती सुहागन मरने का असीस मांगती अम्मा
आज अपना वैधव्य खुद चुन रहीं हैं –
कैसे छाती पर जांते का पत्थर रख कर बोली होंगी
सोच कर कलेजा दरक जाता है –
उधर दूर खड़ी, बड़ी बहू देख रही थी,
अम्मा बाबू का हाथ पकड़ सहला रही थी,
शाम की चाय पर बड़े बेटे से बहू व्यंगात्मक स्वर में कह रही थी,
तुम्हारे माँ बाप को बुढौती में रोमांस सूझता है अभी भी ..
और बेटा मुस्करा दिया ।
पानी लेने जाती अम्मा के कान में यह बोल गर्म तेल से पड़े और वह तो पानी पानी हो गई,
उनकी औलाद की आँख का पानी जो मर गया था –
क्या ये नहीं जानते
माँ बाप बीमारी से नहीं
संतान की उपेक्षा से आहत हो
धीमे धीमे घुट कर मर जाते हैं,
फिर भी उन्हें बुरा भला नहीं कहते।
सत्य तो यही है
मिटटी जब दरकती है
जड़ें हिल जाती है
तब भूचाल आता है ….
एक कसक सी उठती है मन में
क्या
अब भी बदलेगा यह सब
हमारी नई पीढ़ी
सहेज पाएगी अपने संस्कार
वापस आ पायेंगे
क्या साँझा चूल्हे ?
LikeLike